Wednesday, June 22, 2016

देवराहा बाबा


 देवराहा बाबा dk tUe vKkr gS A  og nsofj;k tuin ds ukFk unkSyh xzke]  ykj jksM nsofj;k ftys ds jgus okys FksA  budk tUe dc gqvk ;g Kkr ugha gSA  buds lEiw.kZ thou ds ckjs esa vyx&vyx er gSaA  dgk tkrk gS fd og djhc 900 o"kZ rd ftUnk FksA  dqN yksd mudk thou 250 o"kZ rFkk dqy yksx 500 lky ekurs gSaA  iwT; nsojgk ckck egf"kZ ikratfy }kjk izfrikfnr v"Vkax ;ksx esa ikjaxr FksA
      fgeky; esa vusd o"kksZ rd vKkr :i esa jgdj lk/kuk fd;kA  ogkW ls iwohZ mRrj izns'k ds nsofj;k uked LFkku ij fuokl djus ds dkj.k mudk uke nsojgk ckck iM+kA  nsofj;k tuin ds lyseiqj rglhy esa ebZy ls yxHkx 3 fdyksehVj dh nwjh ij lj;w unh ds fdukjs ,d epku cukdj jgus yxsA  

      iwT; ckck th ds vuqlkj thou dks ifo= cuk, fcuk] bZekunkjh] lkfRodrk] ljlrk ds fcuk Hkxoku dh d`ik izkIr ugha gks ldrhA  vk/;kRe {ks= esa igqWpus ls iwoZ thou dks 'kq) ,oa ifo= cukuk izFke lksiku FkkA  os dgrs Fks fd Hkkjr Hkwfe ij Jh jke vkSj Jhd`".k us vorkj fy;k gSA  ;g nsoHkwfe gSA  bldh lsok ,oa j{kk djuk izR;sd Hkkjroklh dk drZO; gSA   ckck us ;ksx fo|k ds ftKklqvksa dks gB;ksx dh nlksa eqnzkvksa dk izf'k{k.k fn;kA  os /;ku ;ksx] ukfn ;ksx] y; ;ksx] iz.kk;ke] =kVd] /;ku] /kkj.kk ,oa lekf/k vkfn i)fr;ksa dk tc foospu djrs rks cM+s&cM+s /kekZpk;Z muds Kku ds le{k ureLrd gksrs FksA
      vU; larksa ds vuqlkj og iwjs thou fujoL= jgrs Fks A  /kjrh ls 12 fQV ÅWps cus epku@ckDl esa jgrs FksA  og dsoy lqcg ds le; xaxk Luku ds fy, vkrs FksA  iz;kxjkt esa lu~ 1989 esa egkdqEHk ds ikou volj ij fo'o fgUnw ifj"kn ds eap ls ckck us lans'k fn;k Fkk fd ^^fnO; Hkwfe Hkkjr dh le`f) xkslsok xksj{kk ds fcuk lEHko ugha gksxhA  xksgR;k dk dyad feVkuk vko';d gSA** 
      vius deZ vkSj O;fDrRo ls ,d fl) egkiq:"k ds :i esa mUgksaus izflf) izkIr dh FkhA  muds n'kZu ls izfrfnu fo'kky tulewg 'kkfUr vkSj vkuUn ikrk FkkA  og ;ksx vkSj lk/kuk ds lkFk&lkFk Kku dh ckrsa Hkh crkrs FksA  ;g Hkh dgk tkrk gS fd ckck muds ikl vk,A  lc yksxksa dh eu dh ckr tku ysrs FksA  mUgksaus iwjs thou Hkj dqN ugha [kk;kA  og flQZ nw/k] 'kgn vkSj JhQy xzg.k djrs FksA  Mk0 jktsUnz izlkn] bfUnjk xka/kh] jktho xka/kh] vVy fcgkjh cktis;h] egkeuk enu eksgu ekyoh;] iq:"kksRre nkl V.Mu] ykyw ;kno] eqyk;e flag ;kno vkSj deykifr f=ikBh tSls jktusrk gj leL;k ds lek/kku ds fy, ckck dh 'kj.k esa vkrs FksA  dgk tkrk gS fd tc bfUnjk xka/kh gkj xbZ Fkha rks og iwT; nsojgk ckck ls vkf'kZokn ysus xbZA  mUgksaus vius gkFk ds iats ls mUgsas vkf'kZokn fn;kA  rHkh ls dkaxzsl dk pquko fpUg gkFk dk iatk gSA  lu~ 1980 esa izp.M cgqer ls bfUnjk xka/kh iz/kkuea=h cuhaA  
      tuJqfr ds eqrkfcd mudks fdlh okgu ls ;k=k djrs gq, fdlh us ugha ns[kk tcfd tulewg dks og fofHkUu LFkkuksa ij n'kZu nsrs FksA  [kspjh eqnzk dh otg ls vkokxeu ls dgha Hkh pys tkrs FksA  muds epku ij dqN Hkh ugha jgrk Fkk ysfdu izlkn nsus ds fy, muds gkFk esa Qy] esos ;k vU; [kkn~; lkexzh vk tkrh FkhA
देवराहा बाबा ने मीलचौरा को अपनी कर्मभूमि बनाया था। केवल प्रयाग के कुम्भ मेले के दौरान वे प्रयाग आते थे और मचान बनाकर संगम के बहरी भाग में एक माह तक रहा करते थे। केवल स्नान के लिए वे मचान से नीचे उतरते थे। वे आजीवन वस्त्र  का परित्याग किये रहे और सर्दी ,गर्मी और बरसात में वे निर्वस्त्र ही रहा करते थे। बाबा श्री राम के परम् भक्त थे और अपने प्रिय भक्तों को रामनाम का ही मन्त्र दिया करते थे। उनका कथन था                              एक लकड़ी हृदय को मानो दूसर रामनाम पहिचानो। 
                           रामनाम नित उर पे मारो ब्रह्म दिखे संशय न जानो। 
देवराहा बाबा जनसेवा तथा गोसेवा को सर्वोपरि मानते थे तथा अपने प्रत्येक भक्त को जनसेवा ,गोसेवा ,गोरक्षा करने तथा भगवान राम की भक्ति में लीन रहने का उपदेश दिया करते थे। वे श्री राम व श्रीकृष्ण को एक ही मानते थे और भक्तो के कष्ट से मुक्ति के लिए वे उन्हें श्रीकृष्ण मन्त्र दिया करते थे जो इस प्रकार है :-
                             ॐ  कृष्णाय  वासुदेवाय  हरये  परमात्मने। 
                             प्रणतः क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः। 
बाबा का मत था कि जीवन को पवित्र किये बिना और ईमानदारी,सात्विकता तथा सरसता के बिना भगवद्कृपा नहीं प्राप्त होती है। अतः सर्वप्रथम जीवन को शुद्ध एवं पवित्र बनाने के लिए संकल्प लेना चाहिए। वे प्रायः कहा करते थे कि इस भारत भूमि की दिव्यता का यह प्रमाण है कि इसमें भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण ने अवतार लिया है। यह देवभूमि है।  इसकी सेवा ,रक्षा तथा सम्वर्धन करना प्रत्येक भारतवासी का कर्तव्य है।बाबा के दर्शन के लिए प्रतिदिन भक्तों का समूह एकत्रित हो जाता था और वे बड़ी ही सरलता से उनसे मिला करते थे। भेंट के दौरान वे लोगों को योग ,साधना व ज्ञान की अन्य बातें बताया करते थे। बाबा ने आजीवन भोजन का परित्याग किया था और वे केवल दूध व शहद का सेवन किया करते थे। श्रीफल का रस उन्हें विशेष प्रिय था। मार्कण्डेय सिंह के अनुसार बाबा किसी महिला के गर्भ से नहीं पैदा हुए थे बल्कि वे जल से प्रकट हुए थे। यही कारण है की वे जल में एक घण्टे तक बिना साँस लिए हुए रह लेते थे तथा वे प्रायः जलमार्ग से ही आवागमन किया करते थे। श्रीकृष्ण की लिल्स भूमि वृन्दावन में यमुना के तट पर मचान बनाकर वे चार वर्षों तक साधना किये थे और वहीं पर योगिनी एकादशी के पावन दिवस १९ जून १९९० को निर्वाण भी प्राप्त किये थे। 
देवराहा बाबा कुछ दिनों तक काशी में भी प्रवास किये थे और गोरक्षा के लिए जनजागरण भी किया था।बाबा जंगली जानवरों की भाषा अच्छी तरह से समझ लेते थे और वे उन्हें विशेष प्रेम किये करते थे। गाय को वे अपनी माता मानते थे इसीलिए वे आजीवन गोरक्षा और गोसेवा के लिए प्रयासरत रहे। कहा जाता है कि वे हठयोग में सिद्ध  थे। सम्भवतः इसी कारण वे जल के भीतर काफी समय तक रह लिया करते थे और निर्वस्त्र रहकर वे गर्मी,सर्दी तथा बरसात का सहन कर लिया करते थे। 
देवराहा बाबा महर्षि पतञ्जलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांगयोग में पारंगत थे। कहते हैं कि वे खेचरी मुद्रा में एक स्थान से दूसरे स्थान पर आवागमन करने में समर्थ थे और शायद यही कारण है कि किसी भी व्यक्ति ने उन्हें कभी भी पैदल या अन्य साधन से यात्रा करते हुए नहीं देखा है। उनके निवास स्थल के समीप स्थित बबूल के पेड़ों में कांटे नहीं होते थे बल्कि उनके निवास स्थान के चारो ओर एक मनमोहक सुगन्धि तैरती रहती  थी। कुछ लोग उन्हें अवतारी पुरुष मानते है किन्तु उन्होंने इस प्रकार के कोई संकेत कभी भी नहीं दिए। बाबा कभी भी किसी चमत्कृ शक्तियों का प्रदर्शन नहीं करते थे फिरभी उनके आस पास एकत्रित लोग उनसे किसी चम्तकार की कामना अवश्य किया करते थे।    
 काशी में उन दिनों एक सिद्ध योगी के रूप में देवराहा बाबा की ख्याति फ़ैल चुकी थी। गोपीनाथ कविराज को जब सन १९६९ ई में इनकी ख्याति का परिचय प्राप्त हुआ था तो वे उस समय अस्वस्थ चल रहे थे। अतः उन्होंने अपने शिष्य भगवती प्रसाद सिंह को बाबा के पास उनके श्रीचरणों में अपनी ओर से उपस्थित होने हेतु भेज। उस समय बाबा देवरिया के लार स्टेशन रोड के निकट सरयू नदी के तट पर एक मचान बनाकर निवास कर रहे थे। वे जब बाबा के सम्मुख उपस्थित हुए और कविराज के ऊपर लिखी गयी पुस्तक मनीषी की यात्रा प्रस्तुत की तब बाबा ने कहा कि कविराज देवता भक्त है उसे मेरा आशीर्वाद कहना।  थोड़ी देर वहाँ पर रुकने पर उन्होंने देखा कि भक्तगण जो प्रसाद बाबा को अर्पित कर रहे थे उसी प्रसाद को बाबा अन्य भक्तों को दे देते थे। किसी के विशेष आग्रह पर उसे वे अमृतबूटी भी दे देते थे। कहा जाता है कि बाबा के पास जो कोई भी एकबार उपस्थित हो जाता था उसे वे सदैव स्मरण रखते थे और चाहे कितने वर्षों बाद वह व्यक्ति क्यों न जाये वे पूर्व में हुई अपनी भेंट का जिक्र कर देते थे। यह आश्चर्यजनक बात अवश्य है कि हजारों व्यक्ति उनसे प्रतिदिन मिलते हैं इसके बावजूद बाबा उसे पहचान।  यह बाबा की अपूर्व स्मरण शक्ति को परिलक्षित करता है। अपने प्रयाग प्रवास के दौरान तो वे प्रतिदिन दस हजार व्यक्तियों से मिला करते थे और हरिद्वार,काशी,वृन्दावन में भी इसी प्रकार की संख्या देखने को मिलती थी। उनके सामने जो एकबार पड़ जाता था उसकी आकृति उनके नेत्रों में अंकित हो जाती थी। यह कृत्य कैमरा जैसी थी। जिस प्रकार कैमरे में उसका नेगटिव सुरक्षित रहता है और उसको पॉजिटिव में परिवर्तित कर दिया जाता है उसी प्रकार बाबा के नेत्र भी कार्य करते थे। 
बाबा प्रायः अपने भक्तों को विदा करते समय दया है मेरी असीम कृपा है आदि कथनों से आशीर्वाद देते थे। लोग दर्शन के समय उनका प्रसाद पाकर कृतकृत्य हो जाते थे किन्तु कभी कभी कुछ लोग किसी विशेष कार्यसिद्धि हेतु जब उनका आशीर्वाद पाने का हठ कर देते थे तो वे कहा करते थे की बच्चा जैसा तुम चाहते हो यदि वह हो जाये तो अच्छा ही है किन्तु न हो तो और भी अच्छा है। इस कथन का रहस्य शायद यह है कि यदि निवेदक का इष्ट सिद्ध हो जाये तब उसकी इच्छा पूर्ण हो जाता है किन्तु प्रारब्ध के अनुसार यदि उसकी इच्छा की पूर्ति नहीं हो पाती है तो यही कहा जायेगा कि ईश्वर की इच्छा पूर्ण हो गयी। यही समझकर ईश्वरीय न्याय को स्वीकार करने की ओर बाबा संकेत करते थे। आस्तिकता की यही कसौटी।  बाबा एक महायोगी थे।देवराहा बाबा ने योगियों के सम्बन्ध में कहा है कि योगी को न तो विश्वास की परवाह है और न ही प्रदर्शन की आवश्यकता है। जो योगी सिद्धियों का प्रदर्शन करता है उसे योगी नहीं कहना चाहिए। योगी का संकल्प ईश्वर  संकल्प होता है और उसकी दृष्टि में सर्वत्र ईश्वर ही हैं। उसकी इच्छा भी ईश्वर की इच्छा होती है। इसलिए उसके संकल्प का ईश्वरीय नियमों से कभी विरोध नहीं होता है।
श्री मिथिलेश द्विवेदी जी का देवरहा बाबा के प्रति एक संस्मरण इस प्रकार है :-      
     मुझे अच्छी तरह याद है और मैं वहाँ मौजूद भी था।  कोई 1987 की बात होगी, जून का ही महीना था    वृंदावन में यमुना पार देवरहा बाबा का डेरा जमा हुआ था और  अधिकारियों में अफरातफरी मची थी उसी समय प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बाबा के दर्शन करने आना था।  प्रधानमंत्री के आगमन और यात्रा के लिए इलाके की मार्किंग कर ली गई।  आला अफसरों ने हैलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिए गए थे जिसकी भनक लगते ही बाबा ने एक बड़े पुलिस अफसर को बुलाया और पूछा कि पेड़ को क्यों काटना चाहते हो? अफसर ने कहा, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जरूरी है।  बाबा बोले, तुम यहां अपने पीएम को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे, पीएम का नाम भी होगा कि वह साधु-संतों के पास जाता है, लेकिन इसका दंड तो बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा!
वह मुझसे इस बारे में पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा? नही! यह पेड़ नहीं काटा जाएगा. अफसरों ने अपनी मजबूरी बताई कि यह दिल्ली से आए अफसरों का है, इसलिए इसे काटा ही जाएगा और फिर पूरा पेड़ तो नहीं कटना है, इसकी एक टहनी ही काटी जानी है, मगर बाबा जरा भी राजी नहीं हुए. उन्होंने कहा कि यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है, दिन रात मुझसे बतियाता है, यह पेड़ नहीं कट सकता. इस घटनाक्रम से बाकी अफसरों की दुविधा बढ़ती जा रही थी, आखिर बाबा ने ही उन्हें तसल्ली दी और कहा कि घबड़ा मत, अब पीएम का कार्यक्रम टल जाएगा, तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम मैं कैंसिल करा देता हूं. आश्चर्य कि दो घंटे बाद ही पीएम आफिस से रेडियोग्राम आ गया कि प्रोग्राम स्थगित हो गया है, कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी वहां आए, लेकिन पेड़ नहीं कटा. इसे क्या कहेंगे चमत्कार या संयोग। 

A


No comments:

Post a Comment